ॐ करणां वदनां धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम् । कालिंकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम्॥ शरणागत-दीनार्त-परित्राण-परायणे, सर्वस्यार्तिहरे देवि! नारायणि! नमोस्तुते।’
माँ का रूप रात्रि आपके सामना हैं खुले हुए केश चार भुजाएँ और मुंड़ माला माँ के गले में सुशोभित है । हे शरणागत, गरीब, दुखियों के रक्षण में तत्पर, सभी के दुख दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।